Investor and Trader

Difference Between Investor and Trader in Hindi

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Investor and Trader in Hindi :- जब भी स्टॉक मार्किट में प्रॉफिट gain करने की बात आती है तो Investor and Trader का जिक्र तो जरुर होता हैं और इसके साथ में एक उलझन भी होता है की ये Investor and Trader एक ही होतें हैं या अलग – अलग. एक ही होतें हैं तो इनके दो – दो नाम क्यों होतें हैं और अलग – अलग होतें है तो कैसे? आपको बहुत Confusion लग रहा होगा लेकिन चिंता मत कीजिये.

आज हम आपकी सारी उलझन को दूर करने वालें है, तो आप इस पोस्ट को पूरा जरुर पढियेगा क्योकिं स्टॉक मार्किट में success पाने के लिए Investor and Trader के बीच अच्छी जानकारी होना बहुत जरुरी है. तभी तो आप तय कर पाएंगे की आपके लिए ज्यादा प्रॉफिट क्या हो सकता है Investor बना या Trader बना, चलिए शुरू करतें हैं और जानते हैं Investment और Trading के जरिये Investor and Trader के बारें में…

Investor and Trader in Hindi

तो दोस्तों Investment और Trading ये दो different method होतें हैं स्टॉक मार्किट में प्रॉफिट कमाने के लिए. दोनों ही मेथड में स्टॉक मार्किट में भाग ले करके प्रॉफिट गेन करने का प्रयास किया जाता है लेकिन दोनों तरीकों को काफी अंतर होता है कुछ इस तरह.

अगर ट्रेंडिंग और इन्वेस्टिंग के पीरियड को देखें तो ट्रेडिंग में स्टॉक को बहुत ही कम समय के लिए होल्ड किया जाता है और ये समय एक हफ्ता भी हो सकता है, तो अक्सर केवल एक दिन भी क्योकिं ट्रेडर Short Term में भी मिलने वाले हाई लाभ तक ही स्टॉक को होल्ड करना पसंद करतें हैं यानि ट्रेडिंग का पीरियड बहुत ही short होता है. जबकि इन्वेस्टिंग इससे बहुत ही अलग है क्योंकि इसमें Investor उद्देश्य स्टॉक को खरीदने और होल्ड रखने का होता हैं यानि long term तक जिसमे कुछ सालों का समय भी हो सकता है, तो उससे कई ज्यादा लम्बा समय भी हो सकता है यानि इन्वेस्टिंग मेथड में पीरियड काफी लम्बा होता है.

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तो इन्वेस्टर long period के लिए स्टॉक होल्ड कर के बड़ा रिटर्न लेने में रुचि रखते हैं, तो ट्रेडर्स को राइजिंग और कॉलिंग दोनों तरह के मार्केट में मिलने वाले शॉट लेकिन फ्रिक्वेंट प्रॉफिट यानी कि जल्दी-जल्दी छोटे-छोटे बेनिफिट इंजॉय करना पसंद आता है कैपिटल ग्रोथ के पॉइंट ऑफ यू से देखे तो ट्रेडर्स की नजर मार्केट स्टाफ के प्राइस मोमेंट पर रहती है अगर प्राइस हाई हुआ तो ट्रेडर्स स्टॉक्स को सेल कर देंगे यानी ट्रेडिंग में टाइमिंग काफी काफी बड़ा रोल है जो कैपिटल ग्रोथ को अफेक्ट करता है जबकि इन्वेस्टिंग में क्वॉलिटी स्टोक्स को बहुत सालों तक होल्ड करके कैपिटल ग्रोथ की जाती है, क्योंकि इन्वेस्टर को कंपाउंडिंग इंटरेस्ट और डिविडेंड के जरिए प्रॉफिट बनाना पसंद आता है.


रिस्क फैक्टर की बात करें तो यूँ तो स्टॉक मार्किट एक रिस्क मार्किट ही है जिसमे चाहे इन्वेस्टिंग की बात हो या ट्रेडिंग की रिस्क तो बना ही रहता है लेकिन ट्रेडिंग में ये रिस्क इन्वेस्टिंग से काफी ज्यादा होता है क्योंकि short टाइम में प्राइस कभी भी हाई और लो हो सकतें है और होते भी हैं वहीँ इन्वेस्टिंग में रिस्क होता तो है लेकिन काफी कम इसलिए शॉर्ट term में मिलने वाले return भी कम ही होते हैं लेकिन अगर लम्बे समय तक होल्ड रखा जाए तो compunding इंटरेस्ट और डिविडेंड के जरिये मिलने वालें return काफी ज्यादा हो सकते हैं.


वोर्किंग स्टाइल पर गौर करें तो ट्रेडर्स और इन्वेस्टर का वोर्किंग स्टाइल एक दूसरे से अलग होता है. ट्रेडर्स को one day गेम खेलना पसंद होता है तो इन्वेस्टर को टेस्ट मैच खेलना पसंद होता है. ट्रेडर्स को Quick Result attract करतें है तो इन्वेस्टर को Slow इन study का फार्मूला सही लगता है. ट्रेडर्स मार्किट को सिख कर सही समय पर हाई प्रॉफिट पर ध्यान देते हैं. तो इन्वेस्टर्स स्टॉक को एनालाइज कर के बेस्ट स्टॉक्स में इन्वेस्ट करना प्रेफर करते हैं लेकिन अगर सही टाइम मिस हो जाए तो loss होने के चांसेस काफी बढ़ सकते हैं क्योंकि ट्रेडर्स कंपनी के प्रजेंट परफॉर्मेंस को देखते हुए बाय एंड सेल करते हैं जबकि इन्वेस्टर्स को ट्रेंड्स से कोई मतलब नहीं होता.


उन्हें वैल्यू में इन्वेस्ट करना होता है और long पीरियड के लिए इन्वेस्ट कर के अपने पास होल्ड किए हुए स्टॉक्स पर नजर रखना उनका काम होता है उनमें पेशेंस काफी होता है इसलिए वह स्टाफ को उसके पोटेंशियल तक पहुंचने तक इंतजार करते हैं और जब डिसाइड प्रॉफिट तक पहुंचने पर ही स्टोक्स को सेल करते हैं. अब अगर यह देखें कि कौन ज्यादा स्मार्ट है या किसको ज्यादा प्रॉफिट होता है तो भाई ये कहना तो मुस्किल होगा क्योकिं ट्रेडर और इन्वेस्टर दोनों का तरीका अलग होता है और वोर्किंग स्टाइल भी एक दूसरे के अपॉजिट होता है हां लेकिन उन दोनों का गोल एक ही होता है प्रॉफिट कमाना और प्रॉफिट earn करना.

तो इसका मतलब यह हुआ कि इन दोनों में से जिसने अपना गोल पा लिया यानी डिसाइड प्रॉफिट earn कर लिया वही सक्सेसफुल है जी हां और फिर ये आपकी चॉइस भी तो है कि आपको क्या पसंद है शॉर्ट टर्म में स्मॉल प्रॉफिट के जरिए वेल्थ बनाना या long टर्म पेशेंट के स्टॉक को होल्ड करके ज्यादा हाई प्राइस पर सेल करके वेल्थ जनरेट करना इसलिए आपके लिए जो करना इंटरेस्टिंग और आसान रहे आप वह कर सकते हैं चाहे इन्वेस्टिंग हो या ट्रेडिंग बस स्टॉक मार्किट से प्रॉफिट gain करने का पूरा उद्देश्य होना चाहिए.


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Priyanshu Gupta

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